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बेहिजाबाना अंजुमन में आ / नासिर काज़मी

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बेहिजाबाना अंजुमन में आ
कमसुख़न महफ़िले-सुख़न में आ

ऐ मेरे आहु-ए-रमीदा कभी
दिल के उजड़े हुए खुतन में आ

दिल कि तेरा था अब भी तेरा है
फिर इसी मंज़िले-कुहन में आ

ऐ गुलिस्ताने-शब के चश्मो-चराग़
कभी उजड़े दिलों के बन में आ

कभी फ़ुर्सत मिले तो पिछले पहर
शबग़ज़ीदों की अंजुमन में आ

सुबहे-नौरस की आंख के तारे
चांद मुरझा गया गहन में आ

रंग भर दे अंधेरी रातों में
जाने-सुबहे-वतन वतन में आ

फूल झड़ने की शाम आ पहुंची
नौबहारे-चमन चमन में आ।