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नित नयी सोच में लगे रहना / नासिर काज़मी

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नित नयी सोच में लगे रहना
हमें हर हाल में ग़ज़ल कहना

सहने-मकतब में हमसिनों के साथ
संगरेंजों को ढूंढते रहना

घर के आंगन में आधी आधी रात
मिल के बाहम कहानियां कहना

दिल चढ़े छांव में बबूलों की
रमे-आहू को देखते रहना

अब्रपारों को, सब्ज़ाज़ारों को
देखते रहना सोचते रहना

शहर वालों से छुप के पिछली रात
चांद में बैठकर ग़ज़ल कहना

रेत के फूल, आग के तारे
ये है फ़सले-मुराद का गहना

सोचता हूँ कि संगे-मंज़िल ने
चांदनी का लिबास क्यों पहना

क्या ख़बर कब कोई किरन फूटे
जागने वालो जागते रहना।