Last modified on 19 अगस्त 2018, at 09:29

चंद घरानों ने मिल जुलकर / नासिर काज़मी

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:29, 19 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नासिर काज़मी |अनुवादक= |संग्रह=दी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चंद घरानों ने मिल जुलकर
कितने घरों का हक़ छीना है

बाहर की मिट्टी के बदले
घर का सोना बेच दिया है

सबका बोझ उठाने वाले
तू इस दुनिया में तन्हा है

मैली चादर ओढ़ने वाले
तेरे पांव तले सोना है

गहरी नींद से जागो 'नासिर'
वो देखो सूरज निकला है।