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चंद घरानों ने मिल जुलकर / नासिर काज़मी
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चंद घरानों ने मिल जुलकर
कितने घरों का हक़ छीना है
बाहर की मिट्टी के बदले
घर का सोना बेच दिया है
सबका बोझ उठाने वाले
तू इस दुनिया में तन्हा है
मैली चादर ओढ़ने वाले
तेरे पांव तले सोना है
गहरी नींद से जागो 'नासिर'
वो देखो सूरज निकला है।