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चांदनी शब में भी अंधेरा है / ईश्वरदत्त अंजुम
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चांदनी शब में भी अंधेरा है
चांद को बादलों ने घेरा है
रौशनी की झलक नहीं है कहीं
सायए-ग़म बड़ा घनेरा है
कट ही जायेगी रात भी ग़म की
मेरी नज़रों में इक सवेरा है
जो भी आया है जायेगा आखिर
आरज़ी इस जगह बसेरा है
उसकी रहमत की कर दुआ दिल से
ज़र्रे-ज़र्रे में जिस का डेरा है
नूर फैला है जिसका हर शय में
वो है शादा तो फिर सवेरा है