भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप आये तो हर ख़ुशी आई / ईश्वरदत्त अंजुम

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:51, 20 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वरदत्त अंजुम |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
आप आये तो हर ख़ुशी आई
ज़र्द पत्तों पे ताज़गी आई।

जिस की आमद का था यकीन हमें
लौट कर वो न ज़िंदगी आई।

यूँ रुलाया मुझे ज़माने ने
फिर न लब पर कभी हँसी आई।

प्यार तुम को मिला जमाने का
मेरे हिस्से में बेकसी आई।

दिल निशाना बना इताबों का
चार जानिब से अबतरी आई।

ग़म तो आता है रोज़ ऐ 'अंजुम'
और मुसर्रत कभी कभी आई।