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कतआत / ईश्वरदत्त अंजुम

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तेरी फुरकत का खंज़रे-खूं-रेज़
करता रहता है तार तार मुझे
अपनी खैरो-खबर का ख़त लिखना
ख़त का रहता है इंतज़ार मुझे

तेरी हर बात मुझ पे रोशन है
तेरा हर राज़ से शनासा हूँ
तेरी चाहत की है तलब मुझको
तेरे दीदार का मैं प्यासा हूँ


फूल से फूल मिलाना होगा
एक गुलसितां सजाना होगा
हर तनफ्फुर को मिटा कर दिल से
इत्तिहाद अपना बनाना होगा


चाहतों के गुलाब क्या क्या हैं
और फिर लाजवाब क्या क्या हैं
अम्ने-आलम की चाह, खुशहाली
मेरी आंखों में ख़ाब क्या क्या हैं

मेरी बातों में गुलफिशानी है
मेरे अशआर में रवानी है
ज़ख़्मे-दिल पर निसार हूँ अंजुम
उनकी बख्शी हुई निशानी है

सुब्ह मिलता है शाम मिलता है
मय से लबरेज़ जाम मिलता है
मयकदे की फ़ज़ा ऐ रंगी में
हर खुशी को दवाम मिलता है

बेबसी की फसुर्दगी की है
दास्तां सारी बेकसी की है
मेरे बस की ही बात थी अंजुम
जिस तरह मैंने ज़िन्दगी की है

काम आता है अपना दिल आखिर
अपने ही दिल को आसरा करना
बेवफाओं को सोचना कैसा
बेवफाओं का ध्यान क्या करना

आ भी जो की रुत गुलाबी है
आज आने में क्या खराबी है
आज मौसम शरारती है बहुत
तुमको जाने की क्या शताबी है

आरज़ू थी कि बहर गाम मिले मुझको खुशी
रंज हम राह रहे रोग मिरे साथ चलें
जब तलक ज़िंदा था चलता था मैं तन्हा अंजुम
बाद मरने के कई लोग मिरे साथ चले

ओढ़ कर ग़फ़लत की चादर मयकशी में सूद है
गर्द दिल की जामो-मीना से कभी धुलती नहीं
प्यार में टूटा हुआ दिल फिर नहीं जुड़ता कभी
प्यार में जब गांठ पड़ जाये कभी खुलती नहीं

बनी अहले-दुनिया की कैसी ये सूरत
है बातों में उल्फ़त दिलों में कुदूरत
बहुत ही सियह कारनामे हैं इनके
बज़ाहिर तो लगते हैं सब ख़ूबसूरत।