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अब जाल समेटो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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बहुत हुआ
अब जाल समेटो
कमी वक़्त की
भुजपाश लपेटो
कल न होंगे
इतना तुम जानों
यही सत्य है
हे प्रियवर ! मानो
सफर छोटा
पर अच्छा ही बीता
कर न पाए
हम मन का चीता
बन्धन न था
यह इस जग का
फिर भी इसे
भरपूर निभाया
पात्र था छोटा
पर अधिक पाया
जन्मेंगे हम
फिर तुम्हें मिलेंगे
तेरे आँगन
निश्चय ही खिलेंगे
मन में छुप
हम बात करेंगे
कोई भी मारे
अमर भाव सृष्टि
हम नहीं मरेंगे.