भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देखना तो ये उसकी नादानी / शोभा कुक्कल
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:22, 22 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शोभा कुक्कल |अनुवादक= |संग्रह=रहग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
देखना तो ये उसकी नादानी
मेरी सूरत न उसने पहचानी
कितने बेशर्म हो गये लीडर
अब नहीं उनकी आंख में पानी
बोझ से लद रहे हैं सब बच्चे
कर न पाएंगे अब वो शैतानी
देख कर रंग ढंग दुनिया के
अपनी जाती नहीं है हैरानी
कीमती लग रही हैं आदम की
हम को इस बात की है हैरानी
सबको किस्मत में मौत लिक्खी है
सब के सब लोग हैं यहां फ़ानी
करती है माला माल ख़ुशबू से
मेरे आंगन को रात की रानी
शहर का अपने भाग अच्छा है
आ बसे हैं यहां भी मुल्तानी
लाख चलते हैं बच के हम 'शोभा'
हो ही जाती है हम से नादानी।
</p oem>