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मायूसियों को दूर दिलों से भगाइए / शोभा कुक्कल

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मायूसियों को दूर दिलों से भगाइए
धीरे से आस का कोई दीपक जलाइये

हो जायेगा सदा के लिए मेहरबान वो
मंदिर में एक बार भजन उसका गाइये

पाएंगे बिल-ज़रूर ही मंज़िल को एक दिन
हां हौसलों को अपने कभी आज़माइए

तेगें खिंची हुई हैं यहां भाइयों के बीच
पैग़ाम उनको अम्न-ओ-अमां का सुनाइये

पहचान यूँ तो आपकी सारे जहां में है
पहचान खुद से भी तो किसी दिन बनाइये

भगवान आपको भी गले से लगाएंगे
दुखियों को आप बढ़ के गले से लगाइये

हां! राज़ इस जहां में खुशी का यही तो है
'शोभा' जी ग़म की भीड़ में भी मुस्कुराइये।