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मुश्किलों में भी नहीं ठहरा कलम / शोभा कुक्कल

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मुश्किलों में भी नहीं ठहरा कलम
चल रहा है रात दिन अपना कलम

पल रहे हैं जो अंधेरे में गुनाह
उनपे रोता है सदा मेरा कलम

खुद ही लिखता अपने दिल का हाल यह
दिल के हाथों में भी जो होता कलम

सरहदों पर देख कर दुश्मन खड़े
तेग़ और शमशीर बन जाता कलम

दम अगर होता कलम में अपने कुछ
कोई सुन्दर सी ग़ज़ल लिखता कलम

बिक गये अहले-कलम इस दौर में
बेच डाला अपना फ़न अपना कलम

जो भी लिक्खा वो लिखा मेरे खिलाफ
कुछ तो मेरे हक़ में भी लिखता कलम

चलता जाता है अदा ऐ खास से
रुक नहीं सकता कभी शोभा कलम।