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चरम-बिन्दु / महेन्द्र भटनागर

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एक लमहा

फ़र्क है —
होने,
न होने में !
बहुत सूक्ष्म सीमा है
अस्तित्व
और
अनस्तित्व के मध्य,
फ़र्क है
सिर्फ़ रेखा भर
हँसने
और रोने में !

बहुत सूक्ष्म अन्तर है
अभिव्यक्ति में
अन्तःकरण की !
सम्भव नहीं है
खींचना सरहद
जनम की, मरण की !

स्थितियाँ —
समतुल्य हैं लगभग !
युग-युग सँजोयी साध
कब किस क्षण अचानक
मूर्त हो जाए ;
अमूर्त हो जाए ;
एक पल झपकी
बहुत है
पाने और खोने में !
एक लमहा
फ़र्क है —
होने;
न होने में !