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जाने क्या देखा था मैंने ख़्वाब में / शहरयार

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जाने क्या देखा था मैंने ख़्वाब में
फंस गया फिर जिस्म के गिरदाब में

तेरा क्या तू तो बरस के खुल गया
मेरा सब कुछ बह गया सैलाब में

मेरी आंखों का भी हिस्सा है बहुत
तेरे इस चेहरे की आबो-ताब में

तुझ में और मुझ में तअल्लुक है वही
है जो रिश्ता साज़ और मिज़राब में

मेरा वादा है कि सारी ज़िन्दगी
तुझ से मैं मिलता रहूंगा ख़्वाब में।