भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई / शहरयार
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 23 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहरयार |अनुवादक= |संग्रह=सैरे-जहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हुजूम-ए-दर्द मिला ज़िंदगी अज़ाब हुई
दिल ओ निगाह की साज़िश थी कामयाब हुई
तुम्हारी हिज्र-नवाज़ी पे हर्फ़ आएगा
हमारी मूनिस ओ हमदम अगर शराब हुई
यहाँ तो ज़ख़्म के पहरे बिठाए थे हम ने
शमीम-ए-ज़ुल्फ़ यहाँ कैसे बारयाब हुई
हमारे नाम पे गर उँगलियाँ उठीं तो क्या
तुम्हारी मदह-ओ-सताइश तो बे-हिसाब हुई
हज़ार पुर्सिश-ए-ग़म की मगर न अश्क बहे
सबा ने ज़ब्त ये देखा तो ला-जवाब हुई।