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ख़्वाहिशें जिस्म में बो देख़ता हूँ / शहरयार

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ख़्वाहिशें जिस्म में बो देख़ता हूँ
आज मैं रात का हो देखता हूँ

सीढ़ियां जाती हुई सूरज तक
देखना चाहा था सो देखता हूँ

तितलियाँ, फूल, भंवर ख़ुशबू के
याद वो आता है तो देखता हूँ

ऐ ख़ुदा और न देखे कोई
मैं खुली आंख से जो देखता हूँ

शर्त गर ये है समंदर तेरी
किश्तियाँ सारी डुबो देखता हूँ

आईने धुंधले हुए माज़ी के
आंसुओं से उन्हें धो देखता हूँ।