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फ़िक्र क्या जब / कुमार मुकुल

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धूप मीठी और चिड़िया बोलती है डाल पर

पर पड़ोसी ढहा सा है दीखता अख़बार पर।


फाकाकशी में भी याँ को सूझती सरगोशियाँ

अगर रखना है तो तू ही रख नज़र व्योपार पर।


जानता है वक़्त उल्टा सा पड़ा है सामने

कौन सीधा सा बना है अपन ही धरतार पर।


हर तरफ कातिल निगाहें और हैं खूँरेज़ियाँ

फ़िक्र क्या जब निगाहबानी यार की हो यार पर।