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अब के बरस भेज भैया को बाबुल / शैलेन्द्र
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अबके बरस भेज भैया को बाबुल,
सावन में लीजो बुलाय रे
लौटेंगी जब मेरे बचपन की सखियाँ,
दीजो संदेसा भिजाय रे
अंबुवा तले फिर से झूले पड़ेंगे,
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें
लौटेंगी फिर तेरे आँगन में बाबुल,
सावन की ठंडी बहारें
छलके नयन मोरा कसके रे जियरा,
बचपन की जब याद आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल
बैरन जवानी ने छीने खिलौने,
और मेरी गुड़िया चुराई
बाबुल थी मैं तेरे नाज़ों की पाली,
फिर क्यूँ हुई मैं पराई
बीते रे जुग, कोई चिठिया ना पाती,
ना कोई नैहर से आए रे
अबके बरस भेज भैया को बाबुल …
(फ़िल्म - बन्दिनी 1963)