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गाँव-गाँव गाते रहे भजन कबीरदास / अशोक 'अग्यानी'
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प्रेम की पवित्र अभिनन्दनीय वादियों में
जाने कौन सी बयार पत्तियों को छू गयी
चाहत की चाँदनी सिहर गयी पोर-पोर
आहत हुई तो ओस बनकर चू गयी
भावना के रंग भेद-भाव के शिकार हुए
अपनों से दूर अपनों की खुशबू गयी
गाँव-गाँव गाते रहे भजन कबीरदास
किन्तु किसी मन से न मैं गया न तू गयी