भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँखें / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:30, 3 सितम्बर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1-जिंदगी

जिस शिद्दत से देखते हो
तुम मेरा चेहरा,
काश ! जिंदगी भी
उतनी ही कशिश-भरी होती !

2-आँखें

तुम्हें विदा कहते हुए
मेरी आँखों ने एक चिट्ठी लिखी
तुम्हारी आँखों के नाम,
तुम्हारी आँखों ने पढ़ी;
लेकिन आँसुओं से
उस लिखावट को धोने के बजाय
तुम्हारी आँखों ने
समेट लिया उन सन्देशों को
और जुदाई में आँसुओं से
एक-एक अक्षर पर
लाखों ग्रन्थ लिख डाले।

3-प्रणय -निवेदन

जिस उम्मीद से
किसान देखता है
आकाश की ओर
उसी उम्मीद-सा है, प्रिय!
तुम्हारा प्रणय-निवेदन

4-जीवन

मिलन के आनन्द से
प्रारम्भ हुआ जीवन
माता के गर्भ में
पूरा जीवन कुछ नहीं
कभी न मिलने वाले
आनन्द की खोज के सिवाय।

5-मृगतृष्णा

प्रिय-वियोग के पतझर में-
जीवन-वृक्ष से निरंतर
पत्तों-सी झरती रही
आशा और प्रतीक्षा
प्रेम-वसंत की मृगतृष्णा में।

6-तुम्हारा स्पर्श

विरह के बाद
इतना ही सुखद है
तुम्हारा स्पर्श !
जैसे- कैदी जेल से छूटकर
वर्षों बाद अपने घर से मिला हो
या फिर कोई रोगी
लम्बी बीमारी के बाद
स्वस्थ होकर घर लौटा हो।

7-तुम आए

तुम आए स्वप्न जैसे
इससे पहले कि यकीं होता
दुनिया की हकीकत ने
नींद से जगा दिया
और मैं कभी तुम्हें खोज रही थी
कभी देख रही थी- दीवारें ।

8-पीड़ा
तुमसे दूर होकर
विरह को जीने में
असहनीय पीड़ा
बार-बार मरने जैसी।