Last modified on 25 जुलाई 2008, at 00:38

जीवन शाप या वरदान / हरिवंशराय बच्चन

Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:38, 25 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} जीवन शाप या वरदान? सुप्‍त को तुमने ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


जीवन शाप या वरदान?


सुप्‍त को तुमने जगाया,

मौन को मुखरित बनाया,

करुन क्रंदन को क्‍यों बताया मधुर गान?

जीवन शाप या वरदान?


सजग फिर से सुप्‍त होगा,

गीत फिर से गुप्‍त होगा,

मध्‍य में अवसाद का ही क्‍यों किया सम्‍मान?

जीवन शाप या वरदान?


पूर्ण भी जीवन करोगे,

हर्ष से क्षण क्षण भरोगे,

तो न कर देंगे उसे एक दिन बलिदान?

जीवन शाप या वरदान?