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जीवन में शेष विषाद रहा / हरिवंशराय बच्चन
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जीवन में शेष विषाद रहा!
कुछ टूटे सपनों की बस्ती,
मिटने वाली यह भी हस्ती,
अवसाद बसा जिस खंडहर में, क्या उसमें ही उन्माद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
यह खंडहर ही था रंगमहल,
जिसमें थी मादक चहल-पहल,
लगता है यह खंडहर जैसे पहले न कभी आबाद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!
जीवन में थे सुख के दिन भी,
जीवन में थ्ो दुख के दिन भी,
पर, हाय, हुआ ऐसा कैसे, सुख भूल गया, दुख याद रहा!
जीवन में शेष विषाद रहा!