भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाजवन्ती / भारतरत्न भार्गव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 6 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतरत्न भार्गव |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कैसे पहुँच गया
लाजवन्ती के युवा पौधों के बीच
पता नहीं।
फूल ये गुलाब से सलोने
पर चौकन्ने
रोम-रोम सजी प्रतीक्षित मुखश्री
देखती रहीं कौतुकी दृष्टि
छू भर दिया अनछुए कपोलों को
सहमी फिर लजा गई
सखियों के आँचल में
लुक-छिप जाने को आकुल-व्याकुल
चित्ताकर्षक भंगिमा
अनुभव था नया-नया
विस्मृतियों को ताज़ा करते
मुड़ने लगे पाँव अनायास फिर
काँटों कँकरों भरी पगडण्डियों की ओर !
लौटते देख मुझे
आहिस्ता से खोली पलकें
उठी गरदन, कँपकँपाए ओठ
पढ़कर मेरी आँखें निस्पृह, निर्विकार
बोली धीमे चुपके से —
रूको, फिर नहीं छुओगे मुझे !