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आत्मरोदन / भारतरत्न भार्गव

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लाल चींटियों का गिरोह
घसीट कर ले जा रहा है अपने बिल में
एक बूढ़ी आत्मा।

गोपन विषैले डँकों को निरापद ज्ञापित करते
अन्दर की आँखों में छिपाए दहशतनाक इरादे
बढ़ता मौन जुलूस आहिस्ता - आहिस्ता
रहस्यमय गन्तव्य की ओर
जा पहुँचता है अनजाने ब्रह्माण्ड के
अन्तिम छोर तक।
अशरीरी आत्मा का क्रन्दन या ग़रीब का रोदन
चीख़ने - बिलखने की भाषा से बेख़बर
आक्रोश के भाव से अभावग्रस्त
चला जाता है न जाने की चाह के बावजूद
किसी अदृश्य लोक में।
एक अनाम ग्रह से करता उत्कीर्ण
समूची धरती के दुःस्वप्नों के कथादंश
एक अनलमुख पिशाच
विदेह में होता नहीं द्रोहकर्ष
भले ही स्मृतिकोष में धँसी हों
रौंदी और कुचली आकाँक्षाओं की बस्तियाँ
अनिमेष अग्निकाण्ड में झूलती प्रार्थनाएँ / याचनाएँ
रौशनी और धुआँ
सिरजन और ध्वंस में निर्द्वन्द्व
लाल चींटियों की गिरफ़्त से
मुक्ति की करती प्रतीक्षा
एक बूढ़ी निरानन्द आत्मा।