भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लिपटा वहीं / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 11 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कविता भट्ट |संग्रह= }} Category: ताँका...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
लिपटा वहीं
घुँघराली लटों में
मन निश्छल,
चाँद झुरमुटों में
न भावे जग-छल ।
 2
ढला बादल
नदी के आगोश में
हुआ पागल
लिये बाँहों में वह
प्रेमिका -सी सोई।
3
मन वैरागी
निकट रह तेरे
राग अलापे,
सिंदूरी सपने ले
बुने प्रीत के धागे।
4
मन मगन
नाचता मीरा बन
इकतारे -सा
बज रहा जीवन
प्रीत नन्द नन्दन!
5
रवि -सी तपी
गगन- पथ लम्बा
ये प्रेमपथ ,
है बहुत कठिन
तेरा अभिनन्दन!
-0-