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स्मृति-दो / ककबा करैए प्रेम / निशाकर

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बिनु बजायल पाहुन जकाँ
आबि जाइए
अहाँक स्मृति
फेर
भरि-भरि राति
नहि अबइए निन्न
अहाँक संग
बितायल
एक-एकटा पल
जीवन्त होमऽ लगइए
हम ताकऽ लगैत छी अहाँकें
अहाँक स्मृति ताकऽ लगइए हमरा।