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जान-बूझकर नहीं जानती / शकुन्त माथुर

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आज मुझे लगता संसार ख़ुशी में डूबा
क्यों?
जान - बूझकर नहीं जानती।

आज मुझे लगता संसार ख़ुशी में डूबा —
माँ ने पाया अपना धन ज्यों
बहुत दिनों में खोया,
बहुत बड़ी क्वाँरी लड़की को सुघर मिला
हो दूल्हा,
मैल भरी दीवारों पर राजों ने फेरा चूना,
किसी भिखारिन के घर में; बहुत दिनों के
पीछे, मन्द जला हो चूल्हा।
बूढ़े की काया में फिर से एक बार
यौवन हो कूदा।
पकड़ गया था चोर अकेला कूचे में जो
किसी तरह वह कारागृह से छूट गया हो,
या कि अचानक किसी वियोगिन का पति
लौटा
उसी तरह
आज मुझे लगता संसार ख़ुशी में डूबा
क्यों?

जान - बूझकर
नहीं जानती।