भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आत्मा / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 12 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=ककबा करै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अहाँ लग कंचन अछि
तँ अहाँ कीन सकै छी
कामिनी
ओकर रूपक मदिराकें पात्रमे ढ़ारि
रसे-रसे
वा एक्के बेरमे
गटकि सकै छी।
आलिंगन
चुम्बन
नखछेद
आ दशन छेद कऽ सकै छी
मुदा,
ओकर आत्मा नहि कीनि सकै छी।