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क़तरा-क़तरा बिखर गए बादल / विनय कुमार
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क़तरा-क़तरा बिखर गए बादल।
दरिया-दरिया संवर गए बादल।
खो न जाएँ कहीं ख्लाओं में
आँधियों में उधर गए बादल।
जी उठेंगे उन्हीं ज़मीनों में
जिन ज़मीनों पे मर गए बादल।
गर्म मौसम के मर्तबानों में
मां के हाथो सुतर गए बादल।
मेरे अश्कों को जायका लेना
घर तुम्हारे अगर गए बादल।
इससे पहले कि दिल की बात कहें
मेरी हद से गुज़र गए बादल।