हमर कविता / गंग नहौन / निशाकर

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हमर कविता
बाबाक लाठी
बाबीक गंगाजल
बाबूक अखबार
आ पत्नीक कूकर बनि जाए।

हमर कविता
ऋतुमे बसन्त
चिड़ैमे मयूर
रंगमे हरियर
आ आकाश मे इन्द्रधनुष बनि जाए।

हमर कविता
नवयौवनाक हृदय
युवाक लोगगीत

सेनाक आत्मबल
आ विधवाक सहारा बनि जाए।

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