दलाल
दलाल होइछ
पेशा होइत छै दलाली
खाहे गाय बेचए वा माय
देश बचए वा देह।
मनुक्ख पहुँचि गेल
आधुनिकताकें नाँघि
उत्तर आधुनिकतामे
सभ वस्तुक अन्तक जतऽ
होइत छै घोषणा
विचार आ क्रान्तिक अन्त
कवि आ कविताक अन्त
मौगी आ मैथुनक अन्त
तैयो ठकैए मनुक्खकें
दलाल ओछा दैछ धर्मक जाल
फँसैए सोझमतिया लोक।
दलाल
धर्मक नाम पर
गाँधीक गुजरातकें
बनबैछ गोडसेक भूमि
करबैछ दंगा
लागल छै लहासक पथार
बहबैछ सोनितक गंगा।