भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाबी / गंग नहौन / निशाकर

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:53, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण (' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशाकर |अनुवादक= |संग्रह=गंग नहौन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गंगा स्नानक बाद
छाती भरि पानिमे
सुरुजकें अर्ध्य दैत
किछु बुदबुदाइत
फेर गंगा कातमे
बारैत अगरबत्ती
चढ़ाबैत बतस्सा
करैत छथि कोनो कबुला
हमर बाबी।