एहि बेर सिमरिया घाटमे भरि मोन नहैलियै ने पाण्डाकें द्रव्यदान देलियै ने फूल-परसाद चढ़ेलियै ने धूप-अगरबत्ती देखैलियै मंगनियेमे लुटि लेलियै गंगा स्नानक अपार सुख। बालु सटल अएलै हमर संग-संग हमर घर-आँगन धरि हमर अंगाक जेबीमे अपन हाजरी बनबैत गंगाकें मोन पाड़ैत।