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बात बिरानी हो जाती है / बालस्वरूप राही

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मेरे मन की साध आंख में झांक आंक लो
कह देने पर बात बिरानी हो जाती है

सो जाये चुपचाप लहर दृग मूंद रेत पर
मृदु नीरवता बिख़र उठे जब खेत खेत पर
चांद छिपाये काली-घुंघराली अलकों में
तुम आना-जैसे सपने आते हैं पलकों में

मत खनकाना चूड़ी तुम पायल न बजाना
खुल जाने पर प्रीत कहानी हो जाती है।

फड़केगी जब आंख, धीरता चुक जायेगी
चंदा पर जब कोई बदली झुक आयेगी
लजा रहे हों हंस, कमलिनी शरमाई हो-
मैं खुद लूंगा समझ सुनयने, तुम आई हो।

तुम शशि-मुख से घूंघट तनिक उठा देती हो,
लहरों की बेताब जवानी हो जाती है।

तुम आती हो पास हास-उल्लास सँजोये
प्रबल प्यास से अपने आकुल आधार भिगोये
ढल जाती है रात बात पर कब हो पाती
मैं रह जाता खोया-खोया, तुम शरमाती।

कैसा जादू प्राण, न जाने तुम कर देतीं
खुद अपनी ही सांस अजानी हो जाती है

मेरे मन की साध आंख में झांक आंक लो
कह देने पर बात बिरानी हो जाती है।