तुम न बुझाना दीप / बालस्वरूप राही
तुम न बुझाना दीप द्वार का प्राण, रात भर
मेरा जगमग पथ अँधियारा हो जायेगा
गहन अमावस यह फ़नवाली नागन बन कर
धरती का चंदन तरु सा तँ घेर गई है
नीले पड़े अधर अम्बर के, चांद मर गया
जाने कैसा तीखा गरल बिखेर गई है।
तुम हताश होकर जिस क्षण लौ मन्द करोगी
ज्वार तिमिर का मेरी राह डुबो जायेगा।
मुझे बढ़ाती हाथ थाम मनुहार तुम्हारी
जबकि साथ मेरा दुनिया भर छोड़ रही है
मेरे अंतर का सम्बन्ध, डोर गीतों की
प्राण तुम्हारे अंतरतम से जोड़ रही है
तुम सितार के तार तोड़ मत देना तक कर
हर निशान मेरे हाथ का प्रिय, खो जायेगा।
कौन सहारा होगा इससे बड़ा पथिक को
कोई उसका अपलक पंथ निहार रहा है
जब सारे का सारा जग दृग मूंद सो रहा
वह बुझते दीपक की शिखा उभार रहा है
जाग रहीं तुम, मेरा भी विश्वास सजग है
तुम सोओगी मेरा साहस सो जायेगा।
तुम न बुझाना दीप द्वार का प्राण, रात भर
मेरा जगमग पथ अँधियारा हो जायेगा।