भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्वर न बांधो / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 23 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
पींजरे के पार मत जाने मुझे दो
मुक्त नभ के द्वार मत जाने मुझे दो
गीत का विस्तार पर पाने मुझे दो।
बांध दो काया मगर अंतर न बांधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
मेरे पास वह आती नहीं है
जो अधर पर गीत बन जाती नहीं है
मौन रहने के लिए जन्मा नहीं मैं
व्यर्थ मुझ पर व्यंग के तुम शर न साधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
पास जिनके कुछ न कहने के लिए हो
दर्द जिनको कुछ न सहने के लिए हो
वे रहें ख़ामोश कर स्वीकार बंधन
पर मुझे तुम परिधि के भीतर न बांधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।