जो नितान्त मेरी हैं / बालस्वरूप राही
चाहे वे सरस न हों, चाहे वे सफल न हों
मुझको तो प्यारी हैं वे ही अभिव्यक्तियाँ
जो नितान्त मेरी हैं।
मैंने कुछ तुकें इस तरह जोड़ीं
बड़ी नई लगती हैं
खुरदुरी भले हों पर मेरी कुछ कविताएं
गीतिमयी लगती हैं।
चाहे वे झूठी हों, चाहे हों तथ्यहीन
मुझको तो प्यारी है वे ही गर्वोक्तियों
जो नितान्त मेरी हैं।
ख्याति के लिए मैंने संधि नहीं युद्ध किया
कुछ सनकों और जिदों का दिल खुश करने को
शुभचिंतक मित्रों को क्रुद्ध किया।
चाहे वे कड़वी हों, चाहे वे हों असह्य
मुझको तो प्यारी हैं वे ही अनुभूतियाँ
जो नितान्त मेरी हैं।
फूलों में मैं गुलाब चुनता हूँ
आखिर वह कांटों में खिलता है
इसीलिए भाता रा-सिल्क मुझे
क्योंकि उसे बुनकर के सहज सरल गीतों का
लयविधान मिलता है।
चाहे वे हों विचित्र, चाहे हों साधारण
मुझको तो प्यारी हैं, वे ही आसक्तियां
जो नितान्त मेरी हैं।