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जीते हैं किरदार नहीं है / वसीम बरेलवी
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जीते हैं किरदार नहीं है
नाव तो है पतवार नहीं है
मेरा ग़म मझधार नहीं है
ग़म है, कोई उस पार नहीं है
खोना पाना मैं क्या जानूँ
प्यार है, कारोबार नहीं है
सजदा वहां इक सर की वर्जिश
सर पे जहां तलवार नहीं है
मैं भी कुछ ऐसा दूर नहीं हूँ
तू भी समंदर पार नहीं है
पहले तोलो, फिर कुछ बोलो
लफ्ज़ कोई बेकार नहीं है
मैं सबसे झुककर मिलता हूँ
मेरी कहीं भी हार नहीं है।