नयका शिष्टाचार / संजीव कुमार 'मुकेश'
बदल गेलो चाल-ढ़ाल, फैषन विचार,
कलयुग में उपजल ई देखऽ नयका शिष्टाचार!
परनाम गुडमॉर्निंग हो गेल,
सर हो गेला मास्टर।
मैडम गेली ऑफिस, भैया
बुतरू पाले भीतर।
सास-ससुर के नय चल रहलो,
कोय घर में सरकार।
कलयुग में उपजल ई देखऽ नयका शिष्टाचार!
फेसबुक से राखी भेजऽ,
वाट्सएप पर लड्डु आबे।
माय, बहिन के प्यार तुछ हे,
अब पइसा के आगे।
फेसबुके पर प्यार होवे हे,
अब ट्यूटर पर तकरार।
कलयुग में उपजल ई देखऽ नयका शिष्टाचार!
पहले पैर के अंगुठा छू के,
करऽ हलूं परनाम।
अब घुटना तक ही झुके में,
निकलऽ लग हे प्राण।
थोडऊ ऊँचा जो बोंलूं तब,
हो जा हे तकरार।
कलयुग में उपजल ई देखऽ नयका शिष्टाचार!
इंटरनेट से जल चढ़ जाहे,
स्काइप से होवे शादी।
यूट्यूब, इन्स्टा लिख रहलो,
बचबन के बरबादी।
हे राम! अब तुहीं बचावऽ,
सगरो हके अन्हार।
कलयुग में उपजल ई देखऽ नयका शिष्टाचार!