भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टपान / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:17, 30 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमाकांत द्विवेदी 'रमता' |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाटे टपान बस इहे, कदम बढ़ा के चल

आवे दे, का भइल अगर तूफान आ गइल
बिछिली भइल अन्हार में, बरखा बरिस गइल
बिजुरी सुझाई राह, तनि नोंह गड़ा के चल
साथी-समाज ना छूटे, कसिके हँकार ले
के दो गिरे-गिरे भइल, धइले-सँभार ले
नइ के उठाउ, अब बा, कान्हा चढ़ाके चल

खेवा-खरच ओरा गइल, चिन्ता के बात का
पेटे भइल पहाड़ त, शिव के जमात का
हिम्मत न हार, जान के बाजी लड़ाके चल

फाटी कुहेस, सब घरी अन्हार ना रही
फहरी निशान जय के, झुर-झुर पवन बही
जिनिगी के बिपत-बिघिन के, कबड्डी पढ़ाके चल

रचनाकाल : 24.08.1956