भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं जीवन की शंका महान / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 14:45, 26 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} मैं जीवन का शंका महान! युग-युग संचा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैं जीवन का शंका महान!


युग-युग संचालित राह छोड़,

युग-युग संचित विश्‍वास ताड़!

मैं चला आज युग-युग सेवित,

पाखंड-रुढ़‍ि के बैर ठान।

मैं जीवन का शंका महान!


होगी न हृदय में शांति व्‍यापक,

कर लेता जब तक नहीं प्राप्‍त,

जग-जीवन का कुछ नया अर्थ,

जग-जीवन का कुछ नया ज्ञान।

मैं जीवन का शंका महान!


गहनांधकार में पाँव धार,

युग नयन फाड़, युग कर पसार,

उठ-उठ, गिर-गिरकर बार-बार

मैं खोज रहा हूँ अपना पथ,

अपनी शंका का समाधान।

मैं जीवन का शंका महान!