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मौसम के परिंदों पे हंसता हुआ / वसीम बरेलवी
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मौसमों के पिरन्दों पे हंसता हुआ
एक चेहरा है, आंखों मे ठहरा हुआ
रात-भर आंसुओं से जो लिख्खी गयी
सुबह को उस कहानी का सौदा हुआ
आज़ूर्नाओं का रिश्तों से रिश्ता ही क्या
तुम किसी के हुए, मई किसीका हुआ
देिखये, कब कोई पढने वाला मिले
म है ूं अपने ही चेहरे पे िलक्खा हुआ
प्यास का वह सफ़र हूं कि जिसको 'वसीम'
कोई बादल मिला भी, तो बरसा हुआ