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ठहरा पानी हिलाता है कोई / जंगवीर सिंंह 'राकेश'
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ठहरा पानी हिलाता है कोई
बुलबुले बुदबुदाता है कोई
मैं तो ख़ामोश हूँ मगर मुझमें
शोर कब से मचाता है कोई
या'नी ये दिल हुआ है दरवाजा
आता है कोई, जाता है कोई
आरिज़ों पर ख़ुशी लिए हरदिन,
ग़म का मातम मनाता है कोई!