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याद / विनय सौरभ
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उन बारिशों को याद करो
जो तुम्हारी उदास रातों में
लगातार झरती रहीं
और वायलिन बजाते उस दोस्त को
कैसे भूल सकते हो
जो उन रातों में
तुम्हारे सिरहाने बैठा होता था !