Last modified on 8 अक्टूबर 2018, at 20:42

चाँदनी को रुसूल कहता हूँ / साग़र सिद्दीकी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:42, 8 अक्टूबर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाँदनी को रसूल कहता हूँ
बात को बा-उसूल कहता हूँ

जगमगाते हुए सितारों को
तेरे पाँव की धूल कहता हूँ

जो चमन की हयात को डस ले
उस कली को बबूल कहता हूँ

इत्तिफ़ाक़न तुम्हारे मिलने को
ज़िन्दगी का हुसूल कहता हूँ

आप की साँवली सी मूरत को
ज़ौक़-ए-यज़्दाँ की भूल कहता हूँ

जब मयस्सर हों साग़र-ओ-मीना
बर्क़-पारों को फूल कहता हूँ