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कैसे कैसे हादसे सहते रहे / वाजिदा तबस्सुम
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कैसे कैसे हादसे सहते रहे
फिर भी हम जीते रहे हँसते रहे
उसके आ जाने की उम्मीदें लिए
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे
वक़्त तो गुज़रा मगर कुछ इस तरह
हम चराग़ों की तरह जलते रहे
कितने चेहरे थे हमारे आस-पास
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे