Last modified on 23 अक्टूबर 2018, at 22:29

अस्सी का काशी / उज्ज्वल भट्टाचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:29, 23 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आपको जब भी देखता हूं
बुश्शर्ट पहनकर
लाल सायकिल पर सवार
एक नौजवान
इतराता फिरता नज़र आता है
उमर तो बढ़ती गई
लेकिन वरिष्ठ होने का शऊर नहीं आया
मेरी बात मानो
आप जवान ही बने रहो
भले ही
आपको कसिया कहनेवालों की
तादाद घटती जा रही हो।

भदेस होने का बहाना करते हुए
मीठी-मीठी बातें करते होते हो
और मैं समझ जाता हूँ
यह सब झूठ है
जिन्हें धकेलकर
सच्चाई पीछे से झाँक रही है
और वह झाँकती रहेगी
मकसद आपका कुछ भी हुआ करे।