भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आषाढ़ का एक दिन / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 23 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बरसात
धरती को नहला रही है
और धरती
बच्चों की तरह
ताज़गी के अहसास के साथ
सिहर-सिहर उठती
नज़र आती है।
बरामदे के साये से
खुले आसमान में छाए
बादलों को देखता हूँ
सोचता हूँ :
ऐसा ही एक दिन था
ऐसा ही वो दिन था !