आत्म प्रचार-2 / नवारुण भट्टाचार्य / मीता दास
किसका है इतना साहस
कि मुझे सिखा सके
और किसके पास है इतना दुःसमय
कि चाबुक की तरह पछाड़ खाए
मेरी चेतना में
और टूट जाए मेरे पैरों के समीप
जैसे टूटे वेगवान लहर .... कोई?
वे पोंछ लेंगे रुमाल से चेहरे का डर
है कोई ऐसा?
किसके पास है इतना दुःसमय?
राक्षसी नरक और सजावटी समाज .... तुम सब सुनो !
कॉलर नीचे कर लो, कॉलर नीचे कर लो
वे सभी है चाक़ू और चेन की शक़्ल में
बहुत देखे हैं
इलेक्ट्रिक ट्रेनें रुक जाती हैं
अगर मैं रेललाईन पे खड़ा हो जाऊँ
जैसे वैगन तोड़ते है वैसे अगर नींद तोड़ दें
कौन बे?
मेरी कमीज़ तेरी देह पर नहीं अँटेगी
मेरे नाप की बर्फ़ की सिल्ली
आज तक सप्लाई नहीं हुई
लाशघर से इत्र छिड़क कर ले जाएँगे
कर देंगे दिवालिया
बर्फ़ की तरह ठण्डे शब्दों के संग
ढक देंगे फूलों के गुच्छों और फूलमालाओं से
कौन साला?
सभी की जुबान
लाख से सील कर दी गई है
अब साले मृत
कौन कहेगा
बहुत तो जल-भुन कर राख हो चुके होंगे
अब लौट भी आओ
निर्दयी !
किसका है इतना साहस
कि मुझे लौटाए
किसके पास है इतना दुःसमय ?
मूल बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद : मीता दास