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सुबह / मारिन सोरस्क्यू / मणि मोहन मेहता
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सूर्य ....हम नहाते हैं तुम्हारे झाग से
आसमान के ताक पर
रखा हुआ है
हमारा ज़रूरी साबुन ।
तुम्हारी तरफ़ फैलाते हैं
हम अपनी बाँहें
और रोशनी के साथ इस तरह रगड़ते हैं
अपना शरीर
कि आनन्द के अतिरेक से दुखना शुरू कर देती हैं हड्डियाँ,
ओह ! यह आनन्द
सुबहों का इस धरती पर !
जैसे किसी बोर्डिंग स्कूल के स्नानघर में
अपने मुँह में पानी भरकर
बच्चे , एक दूसरे को तर-बतर करते हैं ।
हमें अभी तक नहीं मालूम
कि कहाँ ढूँढें
सबसे अच्छे क़िस्म के तौलिये —
तो फ़िलहाल सिर्फ़ एक मृत्यु है
जिससे हम अपने चेहरे पोंछेंगे ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन