भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक स्पष्टीकरण / नजवान दरविश / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:48, 7 नवम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नजवान दरविश |अनुवादक=राजेश चन्द्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जूडस का कोई इरादा नहीं था
मुझसे ’विश्वासघात’ करने का —
उसे तो पता तक नहीं था
किसी इतने बड़े शब्द के बारे में
वह तो ’बाज़ार का एक आदमी’ भर था
और उसने यह किया —
कि जब ख़रीदार आए —
उसने मुझे बेच दिया
क्या क़ीमत बहुत कम थी ?
हरगिज़ नहीं। चाँदी के तीस सिक्के
कोई कम तो नहीं होते
कचरे से बने किसी इन्सान के लिए
मेरे सारे प्रिय मित्र जूडस ही तो हैं
सब के सब
बाज़ार के आदमी
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र