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दुश्मन / बाद्लेयर / मदन पाल सिंह

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मेरा यौवन केवल एक तूफ़ानी अन्धड़ ही तो था
जो यहाँ-वहाँ
सूरज की तेज़ धूप से गुज़रकर बिखर गया,
दामिनी का हाहाकार और बारिश का विकट ताण्डव था !
जीवन की बग़ीची में आए इस तूफ़ान से
मुश्किल से ही कोई पका फल गिरने से बच सका ।

फिर पतझड़ से मेरा सामना हुआ
जिसमें विचार पत्तों की तरह गिर गए
धरती को झाड़ू और फावड़े से साफ़ किया
उसे नया रूप जो देना था,
और मैं खड़ा था अभागे पत्रहीन गाछ की तरह विचारहीन !
धरती पर थे —
बारिश की बून्दों से बने गहरे निशान
ताज़ी क़ब्रों की तरह उनका मुँह खुला था।

कौन जाने आशा और विचारों से भरे
मेरे स्वप्नों में अंकुर फूटेंगे
जिन्हें बारिश से छितरी, धुली धरा के आँचल में बो दूँ,
क्या उन अँकुरों से नए फूल खिलेंगे ?
कौन-सी रहस्यमय शक्ति उन्हें सींचकर देगी जीवन-रस ?
कौन जाने कि वे अँकुर फल-फूल बनेंगे।

उफ़ ! यह दुख-दर्द कि जीवन ग्रास काल का
काल एक छिपे दुश्मन की तरह, एक परजीवी
जो हमारे हृदय को कुतर-कुतर
और लहू पर पलकर
हमें ख़ौफ़ और कमज़ोरी से
यूँ भर देता है ।

अंगरेज़ी से अनुवाद : मदन पाल सिंह